अहमद पटेल का जाना, कांग्रेस के अरमानों का लुट जाना

अहमद पटेल का जाना, कांग्रेस के अरमानों का लुट जाना

अहमद पटेल होना कोई आसान काम नहीं होता। जिससे एक मुलाकात के लिए पार्टी के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता हो, जिसकी सलाह के बिना देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी की मुखिया कोई नीतिगत फैसला नहीं लेती हों, उस नेता को ना न्यूज़ चैनल पर दिखने की चाहत रहती थी, ना अखबार में छपने की तमन्ना। पर्दे के पीछे रह कर पार्टी का काम कैसे किया जाता है, ये या तो आरएसएस के नेताओं से सीखा जा सकता है या फिर कांग्रेस के दिग्गद नेता अहमद भाई पटेल से। सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और कांग्रेस के सबसे बड़े रणनीतिकार का जाना कांग्रेस के लिए वो क्षति है, जिससे पार्टी शायद ही कभी उबर पाए।

अहमद पटेल मौजूदा दौर में कांग्रेस का सबसे मजबूत स्तंभ थे, निराशा की धुंध में पार्टी की उम्मीद की किरण थे। पिछले 2 दशक में जब भी जरूरत पड़ी, अपनी नेता सोनिया गांधी और अपने दल के साथ खड़े दिखे अहमद पटेल। बीजेपी के लगातार बढ़ते कदम और कांग्रेस की लगातार बढ़ती कमजोरी ने कई बड़े नेताओं का पार्टी से मोहभंग किया, दल-बदल हुए, पार्टी के अंदर रह कर भी नेतृत्व के ख़िलाफ़ विरोध के स्वर उठे, लेकिन इस बीच अहमद पटेल वहीं टिके रहे, जहां वो पिछले कई दशकों से थे। ना तो पार्टी और पार्टी अलाकमान के प्रति उनकी निष्ठा कम हुई, ना ही विरोध में कभी उनकी कोई आवाज़ सुनाई पड़ी। जिस पार्टी में वंशवाद का बोलबाला हो, छोटे-छोटे नेताओं की कई पीढ़ियां भी राजनीतिक विरासत के नाम पर सांसद और विधायक बनती रही हों, उस पार्टी में अहमद पटेल जैसा नेता भी था जो कई मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों से भी ज्यादा ताकतवर होते हुए भी अपने परिवार को सियासत से दूर रखता था। 3 बार लोकसभा और 5 बार राज्यसभा सांसद रहने के बावजूद उन्होंने केंद्र सरकार में कभी मंत्री पद नहीं लिया। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक ने अहमद पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल होने का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने हमेशा सरकार के बजाय संगठन में रहकर काम करने पर जोर दिया। संगठन का काम वो कितनी कुशलता से करते हैं ये बार-बार उन्होंने साबित किया है। 3 साल पहले भी राज्यसभा चुनाव के दौरान अहमद पटेल ने ये साबित कर दिखाया कि वो सियासत के चाणक्य हैं। मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने अहमद पटेल को हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन जीत आखिरकार सियासी दांव-पेंच के पुराने खिलाड़ी अहमद भाई पटेल की ही हुई। उनके निधन के बाद अपनी श्रद्धांजलि में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अहमद पटेल को तेज दिमाग वाला नेता बताया और कहा कि कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में उनकी भूमिका हमेशा याद की जाएगी।

देश को राष्ट्रपिता देने वाले गुजरात ने हिंदुस्तान की सियासत में कई दिग्गज नेता दिए। सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे बड़े कद वाले गुजराती नेताओं की कतार में एक नाम अहमद पटेल का भी है। भारत की राजनीतिक विरासत में ये नाम कल भी बड़ा था, आज भी है और हमेशा रहेगा। अहमद पटेल का जाना उनके परिवार के लिए जितनी बड़ी क्षति है, उससे कई गुना नुकसान कांग्रेस के लिए है। अहमद पटेल का जाना, कांग्रेस पार्टी के अरमानों का लुट जाना है।

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आर के सिंह सलाहकार संपादक

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