’भाग्यनगर’’ में भगवा को ग्रैंड वेलकम, 2023 में बीजेपी के हाथ में तेलंगाना का भाग्य?

’भाग्यनगर’’ में भगवा को ग्रैंड वेलकम, 2023 में बीजेपी के हाथ में तेलंगाना का भाग्य?

“हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन

दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है”

मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर बीजेपी विरोधी दलों और नेताओं पर हर उस चुनाव के बाद फिट बैठता था, जिसमें केसरिया परचम लहराता था। EVM नाम का एक हथियार था, जो हर हार के बाद चलाया जाता था। लेकिन ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों ने जनाधार खोते जा रहे कांग्रेस जैसे सियासी दलों से ये हथियार भी छीन लिया है। बैलेट पेपर के जरिये मतदान हुआ है, फिर भी नबाबों के शहर में तकरीबन एक तिहाई सीटों पर भगवा लहराया है। पिछली बार सिर्फ 4 सीटें जीत पाने वाली बीजेपी अभूतपूर्व कामयाबी हासिल करते हुए 48 सीटें जीतने में कामयाब हो गई है।

दक्षिण में कर्नाटक के बाद बीजेपी का दूसरा दुर्ग बना है तेलंगाना। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। इसके इलाके के अंदर 5 लोकसभा और 24 विधानसभा सीटें आती हैं। लिहाजा, तेलंगाना की राजनीति में नगर निगम चुनाव के नतीजों को कमतर नहीं आंका जा सकता। बीजेपी हैदराबाद में अपना मेयर भले ना बना पाई हो, उसने ओवैसी की AIMIM को तीसरे नंबर पर धकेल दिया है। 2016 के नगर निगम चुनाव में 150 में से 99 सीटें जीतने वाली टीआरएस को सिर्फ 55 सीटें मिल पाई और वो बहुमत से दूर रह गई है। हार के बाद भी बीजेपी जीत का जश्न मना रही है, क्योंकि उसे पता है कि इस हार में भी जीत है। हैदराबाद के नतीजों से हासिल होने वाला उत्साह कुछ महीने बाद होने वाली बंगाल की लड़ाई में कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद करने का काम करेगा और अगले साल तमिलनाडु और केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों में संजीवनी का काम करेगा। इतना ही नहीं, तेलंगाना के विधानसभा इलेक्शन में भी बीजेपी को अपनी जीत की राह आसान करने में मदद मिलेगी।

हैदराबाद में नतीजे आये हैं नगर निगम चुनाव के, लेकिन इसका असर दूरगामी पड़ेगा। मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट कर देश भर में अपनी पार्टी का जनाधार जुटाने निकले ओवैसी को अपने गढ़ हैदराबाद में ज्यादा ध्यान देना होगा, ताकि अनिश्चित के चक्कर में निश्चित सियासी ज़मीन भी पैरों के नीचे से खिसक न जाये। ओवैसी की पार्टी भले ही 44 सीटें जीत पाने में कामयाब हो गई हो, अगली बार लड़ाई उसके लिए आसान नहीं रहने वाली है। टीआरएस को भी अपनी सल्तनत बचाने के लिए अगली बार एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। हैदराबाद का रिजल्ट ममता बनर्जी के लिए भी चिंतन और मंथन का विषय होगा, क्योंकि ‘मोदी एंड कंपनी’ का अगला टारगेट बंगाल है।

हैदराबाद के लोकल बॉडी चुनाव में बीजेपी ने हर वो हथकंडा अपनाया, जो वो विधानसभा या लोकसभा चुनाव में अपनाती है। अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा जैसे बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा गया और वोटर के बीच हिंदुत्व का सियासी कार्ड खेला गया। अमित शाह ने चारमीनार इलाके में जाकर भाग्यलक्ष्मी मंदिर से अपने मिशन का शुभारम्भ किया। हिंदू मतदाताओं के बीच ये संदेश दिया कि हैदराबाद जब बाढ़ में डूबा था तब तुष्टीकरण की राजनीति के चलते केसीआर सरकार ने मुस्लिम बहुल इलाकों में राहत कार्य ज्यादा तेजी से चलाए। बीजेपी ने अपनी रैलियों में बार-बार टीआरएस और एमआईएम के बीच गुप्त समझौता होने का दावा करते हुए ये मैसेज दिया कि केसीआर को हिंदू वोटर से ज्यादा मुस्लिम वोटर की चिंता रहती है। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव का हवाला दिया और हैदराबाद की जनता को याद दिलाया कि ओवैसी के खिलाफ टीआरएस ने उम्मीदवार नहीं उतारा था। बदले में AIMIM भी TRS को कई सीटों पर वॉकओवर देती है। इस बार नगर निगम के चुनाव में भी ओवैसी की पार्टी ने 150 में से सिर्फ 51 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे। मकसद साफ था, वो उन इलाकों में वोट का बंटवारा नहीं चाहते थे जहां उनकी पकड़ कमजोर है।

राज्य की सत्ता पर काबिज टीआरएस हो या खुद को हैदराबाद का भाग्यविधाता समझने वाली AIMIM,  नगर निगम चुनाव ने सबकी गलतफहमियां दूर कर दी हैं। बीजेपी ने अभी हैदराबाद में ट्रेलर दिखाया है। असली टारगेट तो 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव है। शुक्रवार को आये नतीजों ने TRS और AIMIM के सामने खतरे की घण्टी बजा दी है। ये घण्टी सुन कर अपनी रणनीति में सुधार करनी है, अपने काम से तेलंगाना की जनता का दिल जीतना है या कान बन्द कर लेना है, इसका फैसला ओवैसी और केसीआर को करना है।

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आर के सिंह सलाहकार संपादक