बंगाल का जन-गण-मन किसके संग, बंगाली मानुष बनेगा किसका भाग्यविधाता?

धीमे-धीमे ही सही, बंगाल में बदलाव की बहार अब बहने लगी है। सत्ता के गलियारों में बग़ावत का एक झोंका सा आया है, जो बंगाल के सियासी पानी में भगवा लहर पैदा करने की कोशिश कर रहा है। दक्षिणपंथ के सबसे बड़े दुश्मन और 35 साल तक लाल झंडा लेकर घूमने वाले बंगाली मानुष का मन और मिज़ाज थोड़ा-थोड़ा बदलने लगा है। बुधवार की रात आसनसोल में जो हुआ उसकी कुछ दिनों पहले तक सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी। TMC सांसद सुनील मंडल के घर पर पूर्व मंत्री सुवेन्दु अधिकारी, विधायक जितेंद्र तिवारी और कई TMC पार्षद पहुंचे थे। ममता की पार्टी के ये बाग़ी अंदर बैठकर अपनी राजनीतिक रणनीति का गुणा-भाग कर रहे थे और बाहर कुछ समर्थक जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे। इशारा साफ था कि अपने-अपने इलाके के सियासी सुरमाओं का ये समूह अपनी मंज़िल किस दिशा में तलाश रहा है।

ममता बनर्जी को सबसे जोर का झटका सुवेन्दु अधिकारी ने दिया है। पहले कैबिनेट की बैठकों का बहिष्कार किया, फिर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया, और फिर विधायक पद भी छोड़ दिया। पार्टी के प्राथमिक सदस्य तो अभी हैं, लेकिन शायद 2 दिन बाद नहीं रहेंगे जब अमित शाह बंगाल दौरे पर आएंगे। सियासी शतरंज की बिसात पर सुवेन्दु जैसे कई मोहरे पाला बदलने के लिए तैयार हैं, बस सही वक्त का इंतज़ार है। सुवेन्दु अगर अपने दल-बल के साथ बीजेपी का दामन थाम लेते हैं तो ये तृणमूल कांग्रेस के लिए इतना बड़ा झटका होगा, जिससे उबरना ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं होगा। सुवेन्दु अधिकारी और उनके परिवार की दक्षिण बंगाल की तकरीबन 60 सीटों पर बेहद मजबूत पकड़ है। सुवेन्दु के पिता और भाई सांसद हैं, बुधवार को इस्तीफा देने से पहले तक वो खुद विधायक थे। तीनों की कर्मभूमि पूर्वी मिदनापुर जिला है। इस जिले के साथ-साथ आस-पास के कई जिलों पर अधिकारी परिवार का दबदबा है। कुछ दिन पहले तक TMC में ममता बनर्जी के बाद नंबर 2 की हैसियत रखने वाले सुवेन्दु अगर अपना वोट बैंक ट्रांसफर करा ले जाते हैं तो तय मानिए ममता बनर्जी को लगातार तीसरी बार बहुमत नहीं मिलने वाला। सुवेन्दु की ताकत का एहसास ममता को है, लिहाजा उनको मनाने के लिए कई दौर की बातचीत भी की गई, लेकिन वो नहीं माने। पार्टी में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी का बढ़ता कद और रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बढ़ती दखल सुवेन्दु को रास नहीं रही है। सुवेन्दु ने ममता के दूतों से साफ-साफ कह दिया कि उनके परिवार के प्रभाव वाली सीटों पर सारा फैसला उनको लेने दिया जाए तभी बात बनेगी। ममता इस शर्त पर राजी नहीं हुई।

अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर की वजह से टीएमसी में कद्दावर नेताओं की नाराज़गी लगातार बढ़ती जा रही है। कूचविहार से विधायक मिहिर गोस्वामी जैसे कई नेता पहले ही टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। अब कुछ और कतार में हैं। इनमें से दो-तीन दिन के अंदर ही कुछ नेता टीएमसी से नाता तोड़ कर बीजेपी से नाता जोड़ सकते हैं। ये दिग्गज नेता हैं –
• ममता सरकार के पूर्व मंत्री सुवेन्दु अधकारी
• ममता सरकार में मंत्री राजीव बनर्जी
• सांसद सुनील मंडल
• विधायक जितेंद्र तिवारी
• नॉर्थ 24 परगना के कद्दावर नेता तपन घोष
बंगाल का क़िला जीतने के लिए बीजेपी जितनी मेहनत कर रही है, उतनी शायद ही किसी और राज्य का चुनाव जीतने में की होगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पूर्व अध्यक्ष अमित शाह का बार-बार बंगाल दौरे का कार्यक्रम है। कैलाश विजयवर्गीय जैसे रणनीतिकार और संगठन मजबूत करने में माहिर सियासी खिलाड़ी पिछले कई सालों से बंगाल में डेरा डाल कर ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। पिछले महीने बंगाल को कई जोन में बांट कर केंद्रीय टीमें ग्राउंड ज़ीरो पर तैनात कर दी गई थीं। अब बंगाल से बाहर के 7 नेताओं को भी ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगाने का जिम्मा देकर बंगाल भेजा जा रहा है। गजेंद्र शेखावत, अर्जुन मुंडा, नरोत्तम मिश्रा, संजीव बालियान, केशव प्रसाद मौर्य, मनसुख मंडाविया और प्रहलाद पटेल को छह-छह लोकसभा सीटों का प्रभार देने की योजना है। इन सभी नेताओं के साथ अमित शाह 19 दिसंबर को कोलकाता में एक बैठक करेंगे और आगे की रणनीति तय की जाएगी। अभी तो बीजेपी की सिर्फ सेना रणक्षेत्र में उतरी है, जब सेनापति मोदी आएंगे तो जंग और भी ज्यादा जबर्दस्त होगी।

2021 का बंगाल विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी के लिए मुश्किल इसलिए होता जा रहा है क्योंकि इस बार उन्हें जीत के लिए एक साथ दो-दो चक्रव्यूह तोड़ना पड़ेगा। बीजेपी ने घेराबंदी कर ही रखी है, हैदराबाद वाले ओवैसी ने भी मैदान-ए-जंग में उतरने का ऐलान कर ‘दीदी’ की बेचैनी बढ़ा दी है। ममता अब ओवैसी पर बीजेपी से पैसे लेकर वोट काटने की साज़िश रचने के आरोप लगा रही हैं। जवाब में ओवैसी ने ममता को अपना घर संभालने की नसीहत दे दी है और कहा है कि दीदी उन पर आरोप लगाने के बजाय अपने नेताओं को बीजेपी में जाने से रोकें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
बंगाल की खाड़ी में सियासी लहरें उफान मार रही हैं। नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सब कमर कस चुके हैं। दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत तय बता रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि वोटर मन में क्या है। फुटबॉल को किक लगाकर दुनिया के हर ग़म से बेफिक्र हो जाने वाला बंगाल का आम मतदाता अपना मिजाज बदल पाएगा या बदलाव की आहट सिर्फ दस्तक देकर लौट जाएगी। फैसला मतदान में होना है। फैसला मतदाता को करना है।