कोरोना की वैक्सीन पर ‘धर्मसंकट’, जानिए क्या है पूरा विवाद

कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने के इंतज़ार में बैठी दुनिया के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। ये संकट है धर्म का। वैक्सीनेशन रफ्तार पकड़े उससे पहले ही विवाद बड़ी तेज़ी से फैलता जा रहा है। दो-दो धर्मों से जुडे कुछ लोगों, संस्थाओं ने वैक्सीन से धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंचने का सवाल उठा दिया है।
• कुछ मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि कुछ वैक्सीन में सुअर के गोश्त का इस्तेमाल हुआ है।
• क्रिश्चियन कैथोलिक्स का आरोप है कि वैक्सीन में गर्भपात किए गए भ्रूण के सेल्स का इस्तेमाल हुआ है।
जानकारों के मुताबिक वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां अपनी कई वैक्सीन में सुअर के गोश्त से बने जिलेटिन का उपयोग करती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि स्टोर करने और एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाने के दौरान वैक्सीन सुरक्षित और असरदार रहे। ‘’पोर्क जिलेटिन’’ की वजह से पहले भी कई बार मुस्लिम देशों में कई वैक्सीन का विरोध हो चुका है और अब कोरोना की वैक्सीन के मामले में भी यही हो रहा है। ‘’पोर्क फ्री वैक्सीन’’ की मांग इस्लामिक देशों से होते हुए भारत भी पहुंच चुकी है। यहां भी कई संगठन ये मांग करने लगे हैं कि देश में कोरोना की किसी वैक्सीन को मंज़ूरी देने से पहले सरकार वैक्सीन तैयार करने में इस्तेमाल किए गए सभी तत्वों की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे और ये सुनिश्चित किया जाए कि उसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं हुआ है। कुछ इस्लामिक संगठनों के अलावा अमेरिका के 2 बिशप ने भी गर्भपात वाले भ्रूण के सेल्स के इस्तेमाल का हवाला देकर वैक्सीन लगवाने से इनकार कर दिया और जनता से भी ऐसा ही करने की अपील की।
धर्म से जुड़ा विवाद शुरू होने पर खुद धार्मिक संगठनों ने मामला संभालने की कोशिश की है और इसमें अहम भूमिका निभाई है यूनाइटेड अरब अमिरात के सबसे बड़े धार्मिक संगठन फतवा काउंसिल ने। फतवा काउंसिंल ने तर्कों के साथ मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की और कहा कि वैक्सीन में अगर ‘’पोर्क जिलोटिन’’ का इस्तेमाल किया भी गया होगा तो इसे खाना तो है नहीं। वैक्सीन को इंजेक्शन के तौर पर लगाया जाएगा। इसे दवा समझा जाए खाना नहीं। जनजागरण का जो काम UAE में फतवा काउंसिल ने शुरू किया, वही काम इजराइल में यहूदी धार्मिक संगठन कर रहे हैं। धार्मिक संगठनों के जरिए जनता को ये समझाया जा रहा है कि वैक्सीन अनैतिक नहीं है और इसे लगवाने में किसी को भी कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए।
तमाम विवादों और सवालों के बीच वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में से कुछ ने पोर्क जिलेटिन के मुद्दे पर अपना पक्ष रखा है जबकि कुछ ने चुप्पी साध रखी है।
• फाइजर ने अपनी वैक्सीन को ‘’पोर्क जिलेटिन फ्री’’ घोषित किया है
• मॉडर्ना ने अपनी वैक्सीन को ‘’पोर्क जिलेटिन फ्री’’ घोषित किया है
• एस्ट्राजेनेका ने अपनी वैक्सीन को ‘’पोर्क जिलेटिन फ्री’’ घोषित किया है
इन तीन कंपनियों के अलावा किसी और कंपनी ने पोर्क जिलेटिन के मसले पर कोई बयान जारी नहीं किया है। बताया जा रहा है कि चीन की कंपनियों ने जो वैक्सीन बनाई है उसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ है। भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के द्वारा बनाई जा रही एस्ट्रजेनेका और इमरजेंसी अप्रूवल मांग रही फाइजर दोनों ही वैक्सीन में सुअर के गोश्त का इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसलिए पोर्क जिलेटन वाले वैक्सीन को लेकर भारत में कई खास विवाद होने की उम्मीद नहीं है।